शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

संविधान चालीसा


(नोट: भारत के संविधान में देवत्व का आभास करते हुए समिति के संस्थापक/संयोजक द्वारा लिखी गयी यह चालीसा भारतीय संविधान के मूल दर्शन को इंगित करने का प्रयास करती हैचालीसा की पंक्तियाँ लगभग संविधान के अध्यायों के संयोजन के क्रम में हैं। )
जय
भारत दिग्दर्शक स्वामी जय जनता उर अंतर्यामी
जनमत अनुमत चरित उदारा सहज समन्जन भाव तुम्हारा॥
सहमति सन्मति के अनुरागी दुर्मद भेद - भाव के त्यागी॥
सकल विश्व के संविधान से। सद्गुण गहि सब विधि विधान से॥
गुण सर्वोत्तम रूप बृहत्तम। शमित बिभेद शक्ति पर संयम ॥
गहि गहि राजन्ह एक बनावा । संघ शक्ति सब कंह समुझावा

देखहु
सब जन एक समाना। असम विषम कर करहु निदाना॥
करि आरक्षण दीन दयाला। दीन वर्ग को करत निहाला॥
हरिजन हित उपबंध विशेषा। आदिम जन अतिरिक्त नरेशा

बालक नारि निदेश सुहावन। जेहि परिवार रुचिर शुभ पावन॥
जग
मंगल गुण संविधान के। दानि मुक्ति,धन,धर्म ध्यान तें॥
वेद, कुरान, धम्म, ग्रन्थ के। एक तत्व लखि सकल पंथ के॥
सब स्वतंत्र बंधन धारन को। लक्ष्य मुक्ति मानस बंधन सो॥
पंथ रहित जनहित लवलीना। सकल पंथ ऊपर आसीना॥
यह उपनिषद रहस्य उदारा। परम धर्म तुमने हिय धारा॥
नीति निदर्शक जन सेवक के। कर्म बोध दाता सब जन के॥
मंत्र महामणि लक्ष्य ज्ञान के। सब संविधि संशय निदान के॥
भारत भासित विश्व विधाताजग परिवार प्रमुख सुखदाता
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रचि विधान संसद विलग, अनुपालक सरकार।
आलोचन गुण दोष के , न्याय सदन रखवार॥
मित्र दृष्टि आलोचना , न्याय तंत्र सहकार॥
रहित प्रतिक्रिया द्वेष से, चितवत बारम्बार॥
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देत स्वशासन ग्राम ग्राम को। दूरि बिचौधन बेईमान को॥
दे स्वराज आदिम जनगण को। सह विकास संस्कृति रक्षण को॥
बांटि विधायन शक्ति साम्यमय। कुशल प्रशासी केंद्र राज्य द्वय॥
कर विधान जनगण हितकारी। राजकोष संचय सुखकारी॥
राज प्रजा सब एक बराबर। जब विवाद का उपजे अवसर॥
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जो जेहि भावे सो करे, अर्थ हेतु व्यवसाय।
सहज समागम देश भर, जो जंह चाहे जाय॥
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सबको अवसर राज करन को। शासन सेवक जनगण मन को॥
सब नियुक्त सेवा विधान से। देखि कुशल निष्पक्ष ध्यान से॥
पांच बरस पर पुनि आलोचन। राज काज का पुनरालोकन॥
जनता करती भांति-भांति से। वर्ग-वर्ग से जाति- जाति से॥

अबुध दमित जन आदि समाजा। बिबुध विशेष बिहाइ बिराजा॥
भाषा भनिति राज व्यवहारी। अंग्रेजी-हिंदी अवतारी॥
विविध लोक भाषा सन्माना। निज-निज क्षेत्रे कलरव गाना॥
राष्ट्र सुरक्षा संकट छाये। सकल शक्ति केंद्र को धाये॥
राज्य चले जब तुझ प्रतिकूला। असफल होय तंत्र जब मूला॥
आपद काल घोषणा करते। शक्ति राज्य की वापस हरते॥
अति कठोर नहिं अति उदार तुम। जनहित में संशोधन सक्षम॥
बिबिध राज्य उपबंध विशेषा। शीघ्र हरहु कश्मीर कलेशा॥

दुष्ट विवर्धित लुप्त सुजाना। आडम्बर ग्रसित सदज्ञाना ॥
राम राज लगि तुम अवतारा। लक्षण देखि वसिष्ठ बिचारा॥
जिनको जस आदेश तुम्हारे। सो तेहि पालन सकल सुखारे॥
समता
प्रभु की उत्तम पूजा। तुम्हरो कछु उपदेश दूजा॥
सो तुम होउ सर्व उर वासी। पीर हरहु हरिजन सुखराशी॥
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यह चालीसा ध्यानयुत, समझि पढ़े मन लाय॥
राज, धर्म, धन सुख मिले, समरसता अधिकाय

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॥ इति श्री भारत भाग्य प्रदीपिका संविधानासारतत्त्वरुपिका च संविधान चालीसा सम्पूर्णा ॥

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