शुक्रवार, 10 जून 2011

भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दे को सम्प्रदाय से न जोड़ें

होशियार, सावधान !

अच्छी बातें सबके लिए सम्माननीय और अनुकरणीय हैं - वे चाहे जिस किसी भी किताब या धर्म ग्रन्थ में लिखी हों। जो अभियान सबके हित में हो उसका समर्थन होना ही चाहिए, वह चाहे किसी भी व्यक्ति, संगठन या पार्टी द्वारा शुरू किया गया हो। भ्रष्टाचार और काले धन के विरुद्ध उठाई जा रही आवाज को इस आधार पर दरकिनार नहीं किया जा सकता कि उसका पहल किसी विशेष समुदाय के लोगों ने किया या वह किसी विशेष संगठन द्वारा समर्थित है।

"फूट डालो -राज करो" की नीति से हम सबको सावधान रहने की जरुरत है। क्या भ्रष्टाचार पर नियंत्रण और काले धन की देश वापसी से मुसलामानों, ईसाईयों और अन्य मतावलंबियों को फायदा नहीं होगा ? सरकार या कुछ स्वार्थी राजनेता यह कह दें कि, इस मुद्दे के पीछे आर एस एस का हाथ है तो आर एस एस को नापसंद करने वाले भाईयों को क्या इस मुद्दे से अलग हो जाना चाहिए ? अपने देश का धन विदेशों में जमा करने वाले डरपोक चोरों गद्दारों से हमारा कहना है कि हिन्दुस्तान की जनता इतनी नादान नहीं है कि उसमें ऐसे सर्वांगीण हित के अभियान में धर्म के आधार पर फूट डाली जा सके।

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

Fundamental Duties: Importance and Implemetability

Today on 8th February 2011 a lecture competition for senior law students and junior lawyers/aspirants in judicial exams was held by the Socio-legal Sensitization Society.

Topic for lecture was – “Fundamental Duties: Importance and Implementability”

Three professors of Allahabad University’s Law Faculty Prof Gurugyan Singh, Asst. Professor Dr Anshuman Mishra and Asst. Prof. Dr. Roshan Lal presided as judges.

Prof J.K. Tiwari Head of the Department of Sociology, B.H.U., Varanasi grassed the occasion as special guest.

Mr. Pramod Kumar Pandey (LL.M. student, Allahabad University bagged the first prize, Mr. Maheep Narayan yadav ( LL.M. student, Allahabad University) and Mr. Rakesh Kumar Pandey, (Advocate, Allahabad High Court) jointly won the second prize and Mr. Pranesh Kumar Mishra (LL.B.) obtained third prize.

Shields were given by the society to aforesaid students.

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

संविधान चालीसा


(नोट: भारत के संविधान में देवत्व का आभास करते हुए समिति के संस्थापक/संयोजक द्वारा लिखी गयी यह चालीसा भारतीय संविधान के मूल दर्शन को इंगित करने का प्रयास करती हैचालीसा की पंक्तियाँ लगभग संविधान के अध्यायों के संयोजन के क्रम में हैं। )
जय
भारत दिग्दर्शक स्वामी जय जनता उर अंतर्यामी
जनमत अनुमत चरित उदारा सहज समन्जन भाव तुम्हारा॥
सहमति सन्मति के अनुरागी दुर्मद भेद - भाव के त्यागी॥
सकल विश्व के संविधान से। सद्गुण गहि सब विधि विधान से॥
गुण सर्वोत्तम रूप बृहत्तम। शमित बिभेद शक्ति पर संयम ॥
गहि गहि राजन्ह एक बनावा । संघ शक्ति सब कंह समुझावा

देखहु
सब जन एक समाना। असम विषम कर करहु निदाना॥
करि आरक्षण दीन दयाला। दीन वर्ग को करत निहाला॥
हरिजन हित उपबंध विशेषा। आदिम जन अतिरिक्त नरेशा

बालक नारि निदेश सुहावन। जेहि परिवार रुचिर शुभ पावन॥
जग
मंगल गुण संविधान के। दानि मुक्ति,धन,धर्म ध्यान तें॥
वेद, कुरान, धम्म, ग्रन्थ के। एक तत्व लखि सकल पंथ के॥
सब स्वतंत्र बंधन धारन को। लक्ष्य मुक्ति मानस बंधन सो॥
पंथ रहित जनहित लवलीना। सकल पंथ ऊपर आसीना॥
यह उपनिषद रहस्य उदारा। परम धर्म तुमने हिय धारा॥
नीति निदर्शक जन सेवक के। कर्म बोध दाता सब जन के॥
मंत्र महामणि लक्ष्य ज्ञान के। सब संविधि संशय निदान के॥
भारत भासित विश्व विधाताजग परिवार प्रमुख सुखदाता
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रचि विधान संसद विलग, अनुपालक सरकार।
आलोचन गुण दोष के , न्याय सदन रखवार॥
मित्र दृष्टि आलोचना , न्याय तंत्र सहकार॥
रहित प्रतिक्रिया द्वेष से, चितवत बारम्बार॥
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देत स्वशासन ग्राम ग्राम को। दूरि बिचौधन बेईमान को॥
दे स्वराज आदिम जनगण को। सह विकास संस्कृति रक्षण को॥
बांटि विधायन शक्ति साम्यमय। कुशल प्रशासी केंद्र राज्य द्वय॥
कर विधान जनगण हितकारी। राजकोष संचय सुखकारी॥
राज प्रजा सब एक बराबर। जब विवाद का उपजे अवसर॥
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जो जेहि भावे सो करे, अर्थ हेतु व्यवसाय।
सहज समागम देश भर, जो जंह चाहे जाय॥
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सबको अवसर राज करन को। शासन सेवक जनगण मन को॥
सब नियुक्त सेवा विधान से। देखि कुशल निष्पक्ष ध्यान से॥
पांच बरस पर पुनि आलोचन। राज काज का पुनरालोकन॥
जनता करती भांति-भांति से। वर्ग-वर्ग से जाति- जाति से॥

अबुध दमित जन आदि समाजा। बिबुध विशेष बिहाइ बिराजा॥
भाषा भनिति राज व्यवहारी। अंग्रेजी-हिंदी अवतारी॥
विविध लोक भाषा सन्माना। निज-निज क्षेत्रे कलरव गाना॥
राष्ट्र सुरक्षा संकट छाये। सकल शक्ति केंद्र को धाये॥
राज्य चले जब तुझ प्रतिकूला। असफल होय तंत्र जब मूला॥
आपद काल घोषणा करते। शक्ति राज्य की वापस हरते॥
अति कठोर नहिं अति उदार तुम। जनहित में संशोधन सक्षम॥
बिबिध राज्य उपबंध विशेषा। शीघ्र हरहु कश्मीर कलेशा॥

दुष्ट विवर्धित लुप्त सुजाना। आडम्बर ग्रसित सदज्ञाना ॥
राम राज लगि तुम अवतारा। लक्षण देखि वसिष्ठ बिचारा॥
जिनको जस आदेश तुम्हारे। सो तेहि पालन सकल सुखारे॥
समता
प्रभु की उत्तम पूजा। तुम्हरो कछु उपदेश दूजा॥
सो तुम होउ सर्व उर वासी। पीर हरहु हरिजन सुखराशी॥
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यह चालीसा ध्यानयुत, समझि पढ़े मन लाय॥
राज, धर्म, धन सुख मिले, समरसता अधिकाय

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॥ इति श्री भारत भाग्य प्रदीपिका संविधानासारतत्त्वरुपिका च संविधान चालीसा सम्पूर्णा ॥

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मंगलवार, 23 मार्च 2010

शनिवार, 9 जनवरी 2010

निहत्थे का बल

जिस चीज को हम अपनी कमजोरी समझते हैं वही हमारी सबसे बड़ी ताकत है हमारे पास जो चीज नहीं है उसे खोने का भय भी नहीं है और निर्भय होना सबसे बड़ी शक्ति है। युद्ध भी वही प्रारम्भ करते हैं जिन्हें भय होता है। जो निर्भय है वह पहले से ही विजयी है।

जिसके
पास बन्दूक है वह अधिक भयभीत है। उसे बन्दूक छिनने का भय है, अनुचित रूप से गोली चल जाने का भय है, बन्दूक जब्त होने का भय है, अभियोजन का भय है इत्यादि इत्यादि.... विचार करें और महसूस करें, क्या उसे भी इतने भय हैं जिसके पास बन्दूक नहीं है ? यह बात धन तथा अन्य साधनों के बारे भी लागू होती है।

भय
ही मृत्यु है निर्भय होना ही अमरत्व है जिसे मृत्यु से भय नहीं, वह अमर है संसाधनों को हथियाने की होड़ लगाने से पहले अपने अमरत्व को पहचानो। तुम अपने अमरत्व को पहचान लोगे तो संसाधन तुम्हारी गुलामी करेंगे, अन्यथा तुम संसाधनों के गुलाम बने रहोगे। साधनसम्पन्न होकर भयग्रस्त रहने से साधनहीन रहकर निर्भय रहना श्रेष्ठतर है। कुछ हासिल करना है तो पहले अभय को हासिल करो; दमन करना है तो पहले अपने भय का दमन करो।शासन करना है तो पहले अपनी छुद्र इच्छाओं और दुष्प्रवृत्तियों को शासित करो।

अतएव
, साधन हीनों ! स्वयं को निर्बल निर्धन समझने वालों ! अपनी निर्भयता की शक्ति को पहचानो, योग अर्थात ऐक्यता की शक्ति को पहचानो और एकजुट हो जाओ आत्मानुसाशित व्यक्ति को किसी अन्य से नियंत्रित होने की आवश्यकता नहीं चन्द भयग्रस्त लोगों से भयभीत होना तुम्हारा भ्रम है। वास्तव में तुम पहले से ही विजयी हो

- डा वसिष्ठ नारायण त्रिपाठी

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

Judicial Sub Committee

Judicial Sub Committee of the Socio-legal Sensitization Society has been formally constituted. It comprises of Advocates and Advocate's clerks of Allahabad High Court. Genuine problems and constructive suggestions relating to court management are cordially invited. Volunteers interested in legal research for betterment of judicial management are also cordially invited.

Contact persons : Dr. V.N. Tripathi, Mr. Harishchandra Tiwari, Mr. Sipahi Lal Shukla, Mr. A.N. Pandey, Mr. Naveen Kumar Advocates and Munshi Shobhnath .

Contact place: Chamber No. 34A, High Court, Allahabad.

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009